टिनकि छत, तर्पाल
का
छज्जा,
पीपल,
पत्ते,
पर्नाला
सब
बजने
लगते
है।
तंग गली में
जाते
जाते,
मेरी साइकल का
पहिया
पानी
की
कुल्लियाँ
करता
है।
बारिशमे कुछ लम्बे
हो
जाते
है
कद
भी
लोगोंके
जितने ऊपर है,
उतने
ही
पैरो
के
नीचे
पानी
में
ऊपरवाला तैरता है
तो
नीचेवाला
डूब
के
चलता
है
!
खुश्क था तो
रस्ते
में
टिक
टिक
छतरी
टेंक
के
चलते
थे
बारिशमें आकाश पे
छतरी
तक
के
टप
टप
चलते
है..
-गुलजार
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